Wednesday 20 July 2016

शौहर की तरफ़ से, बीवियों पर एक ललित निबंध

बीवियों को बला की ख़ूबसूरत, अप-टू-डेट होना चाहिए
बीवियों को शौहर के माथे की शान-ओ-गुरूर होना चाहिए
बीवियों को दुनिया भर के देखने की दिलरुबा होना चाहिए
बीवियों को शौहर के आने का इंतज़ार करना चाहिए
बीवियों को शब-ए-रात, शौहर की बेरुखी सहना चाहिए 
बीवियों को चुप-चाप, अन्दर ही अन्दर घुटना चाहिए
बीवियों को चाहते-न-चाहते शौहर के साथ रहना चाहिए
बीवियों को शौहर की बाँहों में दम तोड़ देना चाहिए
बीवियों को शौहर के लिए धरती का स्वर्ग होना चाहिए
बीवियों को, ता-उम्र, कश्मीर होना चाहिए ?

Sunday 10 July 2016

खरगोश का घर

मैं बड़े जतन से, ख़ुद के लिए
एक कविता लिख रहा हूँ,
शब्द पर शब्द रखकर
मात्रा-वात्रा लगाकर
उधर बच्चे खरगोश के लिए
बना रहे हैं घर
ईंटे पर ईंटा रखकर
पत्थर-वत्थर सटाकर
कविता, पूरी होकर
एक घर हो जाएगी
और घर पूरा होकर,
हो जाएगा एक कविता
मुझे और उस खरगोश को
अब अकेले नहीं रहना होगा

Thursday 7 July 2016

तलब

मुझे ख्वाहिश है
एक थ्री बी.एच.के. घर की
लम्बी सेडान कार की
अप्रेज़ल और प्रमोशन की
पिता को जल्दी रिटायरमेंट की
एक घंटा एक्स्ट्रा अख़बार पढने की
सुबह उठते ही चाय पीने की
राजू को पतंग लूटने की
मर्तबान में टैडपोल पालने की
सेंट वाली इरेज़र की
मिस कपूर को मालबोरो की
स्टेलाटोस और डायमंड की
सो सकने के अधिकार की
बाई को टाइम पे तनख्वाह की
दो सौ रूपए बख्शीश की
दीवाली, होली पे सूती साड़ी की
माँ को दोपहर की नींद की
सफ़ेद कपड़ों की साफ़ धुलाई की
दूध में अच्छी मलाई की
बुधिया को बारिश की
रबी, खरीफ़, जायद की
चावल में अच्छी फली की
दादी को मजबूत जोड़ों की
पक्के वाले नकली दांत की
कुम्भ में स्नान की
रुमझुम को अच्छी सेल्फ़ी की
बिना पिम्पल के चेहरे की
सब कुछ पिंक होने की
ख्वाहिश है, तलब है

सोचता हूँ, कि,
घर, कार, अख़बार,
चाय, मालबोरो, बख्शीश,
नींद, मलाई, इरेज़र
पतंग, फली, और दांत जैसी
छोटी-छोटी चीज़ों की तलब,
ज़िन्दगी को
कितना आसान बना देती है
और उनके पीछे
जुगनुओं की तरह
भागते-दौड़ते

हमें ज़िन्दगी के असल मायने
खोजने के लिए,
जूझना, उलझना, सोचना नहीं पड़ता
और एकदिन थककर, हताश होकर
गौतम बुद्ध नहीं होना पड़ता