तब जबकि हम-सब
ख़ुदा से,
हो रहे होंगे
मुख़ातिब
और कोशिश में होंगे,
सबसे ख़ूबसूरत, सुलझे
और पाक़-साफ़ दिखने को
तब, तुम,
सोई-सोई आँखों से
चली आना, चुपचाप
और मेरी गोद में
सिर रखकर
बेख़बर सो जाना
मुझे यक़ीन है,
ख़ुदा
हम दोनों को
बिठा लेगा, तब
अपने ताज-ओ-तख़्त पर
और, ख़ुद
नीचे बैठकर
पाँव पखारेगा
कुछ मेरे
और कुछ तुम्हारे
स्नेह से भर आई
आखों की
अश्रुधार से !
ख़ुदा से,
हो रहे होंगे
मुख़ातिब
और कोशिश में होंगे,
सबसे ख़ूबसूरत, सुलझे
और पाक़-साफ़ दिखने को
तब, तुम,
सोई-सोई आँखों से
चली आना, चुपचाप
और मेरी गोद में
सिर रखकर
बेख़बर सो जाना
मुझे यक़ीन है,
ख़ुदा
हम दोनों को
बिठा लेगा, तब
अपने ताज-ओ-तख़्त पर
और, ख़ुद
नीचे बैठकर
पाँव पखारेगा
कुछ मेरे
और कुछ तुम्हारे
स्नेह से भर आई
आखों की
अश्रुधार से !