Saturday 8 October 2016

बकेट लिस्ट

अपने आख़िरी दिनों में,
अपनी बकेट लिस्ट
टिक करते हुए,
मैं दुनिया के सात अजूबे
देखना. नहीं चाहता. 
न ही यूरोप के सुन्दर देश,
न ही जंगल, नदियाँ, पहाड़.
न इमारतें, मोन्यूमेंट, महल
पेंटिंग्स, स्कल्पचर या पिरामिड

मैं चाहता हूँ, कि
अपने आख़िरी दिनों में
मैं बच्चों के किसी स्कूल जाकर
रोज़ाना तय समय से पहले
छुट्टी की लम्बी घंटी बजा दूं
और स्कूल के बच्चों को
बे-इन्तहा ख़ुशी से दौड़ते,
कूदते, फाँदते, खिलखिलाते
तब तक देखता रहूँ,
जब तक कि हो न जाएँ वो,
नज़रों से ओझल

Sunday 18 September 2016

राम आसरे की बेटी

राम आसरे की बेटी
रोज़ सुबह तड़के, उठकर
स्लेट को अपनी फ्रॉक के
कोर से पोछती है
और स्लेट के ऊपर, बीचों-बीच 
चाक से लिखती है 'ॐ'
और नीचे लिखती है पहाड़ा
दो एकम दो, दो दूनी चार का
और 10/10 को गोले में भरकर
ख़ुद ही 'वेरी गुड' लिख देती है

राम आसरे की बेटी
पीले रंग की गेटिस से
सफ़ेद फीते के फूल के साथ
बाँधती है छोटी सी चोटी
और डॉट पेन की स्याही से
सुबह के सूरज को देखकर
लाल रंग की बिंदी लगाती है
और रामआसरे की साइकिल पर
घनंघन घंटी बजाते हुए
बाल विद्यालय में पढ़ने जाती है

राम आसरे की बेटी
वहाँ गाती है पोएम
हिंदी की, अगंरेजी की
बबलू की और डब्लू की
हम्प्टी, डंपटी, बंटी की
हाथी की और चींटी की
थर्स्टी वाले कौए की
दूर गाँव के नौए की
हलवाई के पेठे की
आलू कचालू के बेटे की

राम आसरे की बेटी
वाटर कलर से सीनरी बनाती है
जिसमें वो तिकोने पहाड़ के पीछे
चमकदार सूरज निकाल देती है
और आस पास कौए उड़ा देती है
आसमानी रंग की नदी बहा देती है
और उसमें तैरा देती है तीन चार नाव
बनाती है एक टोपी वाली झोपड़ी
जिसमें एक गोले और तीन चार डंडी से बना
खड़ा दिखता है सरल सा राम आसरे

राम आसरे की बेटी
जब घर में मेहमान आते हैं
तो बिना शर्माए, घबराए
कहती है माई नेम इज़ मीरा आसरे
एंड माय फ़ादर्स नेम इज़ राम आसरे
तो राम आसरे उसके मुह से
अपना नाम सुनकर, ख़ुशी के मारे
रुआसा हो जाता है
और अपनी बेटी को
कन्धों के ऊपर, बिठा कर
मोहल्ले भर में घुमाता फिरता है

राम आसरे की बेटी
राम आसरे के कंधे पर
जब ज़ोर से हँसती हुई
मोहल्ले भर में घूमती है
तो राम आसरे भगवान से,
बार-बार, प्रार्थना करता है,
कि उसको कन्धों में
बस इतनी शक्ति हमेशा रहे,
कि राम आसरे
राम आसरे की बेटी को
राम आसरे के कन्धों पर
हमेशा घुमा सके

Tuesday 6 September 2016

प्रेम में पड़े लोग

"ज़रा देखो तो. इन्हें.
ये पागल चींटियाँ,
ख़ुद से हज़ार गुना भारी
बोझा ढोती फिरती हैं
दिन रात"

- एक चींटी की ओर
इशारा करते हुए
मैंने कहा.

"प्रेम में पड़े लोग भी
इन जैसे ही होते हैं
अक्सर अपनी धुन में
बे-इन्तहा प्यार ढोते
आ जाते हैं
किसी के पाँव के नीचे"

- पैर बचाते,
मन मसोसते
उसने कहा

Monday 5 September 2016

टीटू की साइकिल

सेंसेक्स सौ अंक गिर रहा है
टीटू साइकिल चलाना सीख रहा है
वो उसे उंगली पकड़ के टहलाता है
घर से मैदान, मैदान से घर
साइकिल के गर्भ में घुसकर
कैंची काट, डग भर
घंटी बजा, टननटन
पाकिस्तान भारत पर बम गिरा रहा है
टीटू साइकिल चलाना सीख रहा है
वो उसे केरियर से धक्का देता है
लंगड़े वाले कुत्ते के पीछे
आँखें खोल, आँखें मीचे
चढ़ाई से ऊपर, ढलान से नीचे
अपनी धुन में गज़ब मगन
चीन नया लड़ाकू जहाज बना रहा है
टीटू साइकिल चलाना सीख रहा है
वो उसके पैडल पर पाँव रख तैरता है
घंटों एक ही रस्ते पर गोल-गोल
जाने कितनी बार गिरता है
घुटना गया फूट, ये भी नहीं सोचता है
घुटना छोड़ अपनी साइकिल पोछता है
नई सरकार में नया बिल आ रहा है
टीटू साइकिल चलाना सीख रहा है
अब वो उचक कर गद्दी पर बैठ जाता है
इधर उधर मटकाता हुए कूल्हा
घोड़ी पर जैसे बैठा हो दूल्हा
चौड़ी सी छाती, सीना भी फूला
सरपट रेस लगाता है
भारत ओलम्पिक मैडल पर चिंतन कर रहा है
टीटू साइकिल चलाना सीख गया है
अब वो आसमान से बातें करता है
परिंदों की तरहा, उड़ता है फ़ुर
दिल्ली, बनारस, भटिंडे, कानपुर
हाँकता है जैसे तांगा हुर्र हुर
दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है
सीरिया में तख्तापलट हो रहा है
टीटू साइकिल चला रहा है
और साइकिल चलाते चलाते
दूसरी दुनिया पहुँच गया है
दूसरी दुनिया में न आइसिस है
न पाकिस्तान, न चीन
न गिरता है सेंसेक्स
न गिरता है बम
न मिलते हैं मैडल
न पास होते हैं बिल
दूसरी दुनिया में
बस साइकिलें हैं
और टीटू जैसे बहुत सारे बच्चे
जो दिन रात साइकिल चलाते हैं
और अपनी साइकिल में
इस बासी दुनिया से अलग
एक नई प्यारी दुनिया बसाते हैं

Wednesday 20 July 2016

शौहर की तरफ़ से, बीवियों पर एक ललित निबंध

बीवियों को बला की ख़ूबसूरत, अप-टू-डेट होना चाहिए
बीवियों को शौहर के माथे की शान-ओ-गुरूर होना चाहिए
बीवियों को दुनिया भर के देखने की दिलरुबा होना चाहिए
बीवियों को शौहर के आने का इंतज़ार करना चाहिए
बीवियों को शब-ए-रात, शौहर की बेरुखी सहना चाहिए 
बीवियों को चुप-चाप, अन्दर ही अन्दर घुटना चाहिए
बीवियों को चाहते-न-चाहते शौहर के साथ रहना चाहिए
बीवियों को शौहर की बाँहों में दम तोड़ देना चाहिए
बीवियों को शौहर के लिए धरती का स्वर्ग होना चाहिए
बीवियों को, ता-उम्र, कश्मीर होना चाहिए ?

Sunday 10 July 2016

खरगोश का घर

मैं बड़े जतन से, ख़ुद के लिए
एक कविता लिख रहा हूँ,
शब्द पर शब्द रखकर
मात्रा-वात्रा लगाकर
उधर बच्चे खरगोश के लिए
बना रहे हैं घर
ईंटे पर ईंटा रखकर
पत्थर-वत्थर सटाकर
कविता, पूरी होकर
एक घर हो जाएगी
और घर पूरा होकर,
हो जाएगा एक कविता
मुझे और उस खरगोश को
अब अकेले नहीं रहना होगा

Thursday 7 July 2016

तलब

मुझे ख्वाहिश है
एक थ्री बी.एच.के. घर की
लम्बी सेडान कार की
अप्रेज़ल और प्रमोशन की
पिता को जल्दी रिटायरमेंट की
एक घंटा एक्स्ट्रा अख़बार पढने की
सुबह उठते ही चाय पीने की
राजू को पतंग लूटने की
मर्तबान में टैडपोल पालने की
सेंट वाली इरेज़र की
मिस कपूर को मालबोरो की
स्टेलाटोस और डायमंड की
सो सकने के अधिकार की
बाई को टाइम पे तनख्वाह की
दो सौ रूपए बख्शीश की
दीवाली, होली पे सूती साड़ी की
माँ को दोपहर की नींद की
सफ़ेद कपड़ों की साफ़ धुलाई की
दूध में अच्छी मलाई की
बुधिया को बारिश की
रबी, खरीफ़, जायद की
चावल में अच्छी फली की
दादी को मजबूत जोड़ों की
पक्के वाले नकली दांत की
कुम्भ में स्नान की
रुमझुम को अच्छी सेल्फ़ी की
बिना पिम्पल के चेहरे की
सब कुछ पिंक होने की
ख्वाहिश है, तलब है

सोचता हूँ, कि,
घर, कार, अख़बार,
चाय, मालबोरो, बख्शीश,
नींद, मलाई, इरेज़र
पतंग, फली, और दांत जैसी
छोटी-छोटी चीज़ों की तलब,
ज़िन्दगी को
कितना आसान बना देती है
और उनके पीछे
जुगनुओं की तरह
भागते-दौड़ते

हमें ज़िन्दगी के असल मायने
खोजने के लिए,
जूझना, उलझना, सोचना नहीं पड़ता
और एकदिन थककर, हताश होकर
गौतम बुद्ध नहीं होना पड़ता



Sunday 6 March 2016

कॉटन


यार ! चलो कहीं चलते हैं,
घूम-फिर-आने जैसा 'चलने' नहीं
चलते-चले-जाने जैसा 'चलने' के लिए

यूँ नहीं कि पंछियों जैसा उड़ें 
तो हर शाम लौट आने के लिए
चलें वहां, जो दफ़्तर, स्कूल या मार्किट न हो
चलें तो ऐसा, कि लौट आने की सुध न हो

जैसे दो बच्चे क्रिकेट खेलने निकल गए हों
माँ कितना भी बुलाए, पर वो लौटें न

भरी दुपहर, घाम, धूप, शाम, छाँव, रात
बिना प्लान, बिन सामान, चले चलें
जैसे पापा की ऊँगली थामे
उसे झुलाते, चलते चले जाते थे

चलें, तो यूँ नहीं कि चलता देख,
कोई कहे, कि, "चलना ही ज़िन्दगी है"
चलें तो यूँ कि कपास के बीज की तरह
निरन्तर उड़ते रहेंं, रुई वाला बाबा बनकर

दो पल के लिए रुकें भी किसी की मुट्ठी में
तो खोलते ही फिर उड़ जाएं

चलें, कपास से टूटे,
कपास का आवारा बीज, बनकर
जिसे कपास के बाकी रेशों की तरह
कॉटन की बोरिंग वरदी नहीं बनना पड़ता