अभी तो बस इब्तदा है मियाँ,
और इश्क़ में उबकाई आती है !
कल को दिल भी छलनी होगा,
तुम्हें 'तुरपाई' आती है ?
ये निखिल सचान का रफ़ रजिस्टर है....इसमें उस वक़्त की कविताएँ हैं, जब मुझे लिखने का ख़ास सलीका नहीं था और आज की बातें है, जब आज भी मैं सलीका सीख ही रहा हूँ ! काश ता-उम्र सीखता रहूँ और इसी शौक़ में ज़िंदगी गुज़र जाए