मेरे 'रंगरेज़'
कल तलक
दुकानदार
'रूहें' बदल बदल कर
परेशान था
ख़रीदार 'शीशे' के उस पार
नज़र-बाजी करने भी नहीं आते थे
इश्क ओढ़ा कर
तुमने
इस 'मैनीक्विन' को
थोड़ा दिलचस्प क्या बना दिया....
लोग कहते हैं
अब
बिल्कुल
'इंसानों' जैसा लगता हूँ
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