गौरतलब बात है कि
पंछियों ने
ऐहतियातन
आसमानों में
मील के पत्थर नहीं बोए
और इंसानों ने
ज़मीन पर
भतेरे पत्थर
एक-एक मील बाद
बो कर, रंग पोत दिए
दीवानगी में
मौजूँ,
बेहिसाब उड़ते वक्त
पंछी, हँसते होंगे
देखकर,
कि इंसान रेंगता भी है
तो गिन-गिन कर
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एक दिन
उनमे से ही,
एक पंछी
मुझसे बोला
कि मेरे यार
अजीब इत्तफ़ाक़ है, कि
आसमान से देखने पर
मील की पत्थरों का हुलिया
कब्रिस्तान में धँसे
मुर्दों के नेम-प्लेट वाले
पत्थरों से
हू-ब-हू मिलता है
क्या ये
चितकबरी सी सडकें
तुम्हारी उड़ानों का
मुर्दाघर हैं ?
गौरतलब बात है...
लाज़वाब,
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