Friday 30 August 2013

ऐहतियातन

गौरतलब बात है कि 

पंछियों ने 
ऐहतियातन 
आसमानों में 
मील के पत्थर नहीं बोए  

और इंसानों ने 
ज़मीन पर 
भतेरे पत्थर 
एक-एक मील बाद 
बो कर, रंग पोत दिए 


दीवानगी में 
मौजूँ, 
बेहिसाब उड़ते वक्त 
पंछी, हँसते होंगे

देखकर, 

कि इंसान रेंगता भी है 
तो गिन-गिन कर  

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एक दिन
उनमे से ही, 
एक पंछी 
मुझसे बोला 
कि मेरे यार 
अजीब इत्तफ़ाक़ है, कि  

आसमान से देखने पर 
मील की पत्थरों का हुलिया 
कब्रिस्तान में धँसे  
मुर्दों के नेम-प्लेट वाले 
पत्थरों से 

हू-ब-हू मिलता है 

क्या ये 
चितकबरी सी सडकें
तुम्हारी उड़ानों का 
मुर्दाघर हैं ?


गौरतलब बात है...

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