Friday 30 August 2013

पोस्टमार्टम

कल एक कत्ल हुआ है

एक शायर का

सुबूत के नाम पर
एक नज़र पड़ी मिली थी
जिसकी शक्ल किसी खंज़र से
काफ़ी कुछ मिलती सी थी

मुस्कुराती सी लाश की धड़कनें
रफ़्तार के नए गुमान में
अभी तक शायर के सीने पर
तालियां दे रही थीं

बेचारे की गूंगी कलम की ज़ुबान
किसी के लबों से सिली हुई
पाई गई ..

खैर..

अब उसकी नज़्में
सनाथ हो गई हैं
कुछ मायनों में अनाथ भी

स्याही ने खुशी खुशी
पन्नों का सफ़ेद वैधव्य त्याग दिया है

बेचारे के शब्दों का कुनबा
असंख्य से घट कर
ढ़ाई मात्र रह गया

कल्पना के पर शायर ने
कल ही तो कुतरे हैं
अधूरी पड़ी गज़लें खुद ही
अपना अन्त बांछा करती हैं

इर्शादों का टोटका भी
उसे बचा नहीं पाया
अर्ज़ की फ़ुरसत उसे रही नहीं
शुक्रिया की तहज़ीब भी उसने
कल ही तो त्यागी है

बेचारा शायर आजकल
पन्ने फ़ाड़ता फ़ेंकता रहता है
अपने अभागे मिसरों की चिंदियां
उसे सुकून देने लगी हैं

सुनने में आया कि
कल उसको
इश्क़ हो गया ....

शहर भर में उसे कोई
ठीक ठीक पहचान तो नहीं पाया
लेकिन मौका-ए-वारदात पर मुस्कुराती
गोल गोल आंखों वाली
एक चश्मदीद मोहतर्मा
उसका नाम 'निखिल' बताती हैं...

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