Friday 30 August 2013

नए दांत

एक कवि, 
छोटे बच्चों जैसा होता है 
जो नए-निकलते दांतों
के "अरसाने" से 

हर चीज़ काटते फ़िरते हैं 

उँगलियाँ, चप्पल, मिट्टी, 
तश्तरियाँ, बक्कल, चिक्की 

भले उनकी हथेलियों में 
नीम-करेला-मिर्ची मल लीजिए,
वो उन्हें चूसना नहीं छोड़ते

कविता 
शौक़ की उपज नहीं है 
कविता उलझन है 
मजबूरी है

1 comment:

  1. निखिल जी, सौ फीसदी सच बात कही है।

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