हमारी जिंदगी
हू-ब-हू
फिल्मों के साइड के किरदारों सी होती है
दोनों ही नाचते रहते हैं
जी-तोड़, कमर-मोड़
चेहरे में हैज़ान लिए
एक 'केन्द्र बिंदु' के इर्द-गिर्द
ताकि
एक दिन,वो भी
"केन्द्र बिंदु" बन जाएँ
और नोटिस कर सकें उसे इंसानी आँखें
जिन्हें 'इधर-उधर'
ना ही है कुछ दिखता
और ना ही होता है बर्दाश्त
जिन्दगी एक कशमकश है, केन्द्र बिंदु बनने की
क्यूंकि केंद्र बिंदु
होता है गज़ब का शक्तिशाली
और सम्मोहित करने वाला
लील सकता है वो पूरी सोसायटी
नियम, कायदा और कानून
अपने 'चार्म' से
याद करो, वो सिलसिला का अमिताभ
जो अपनी बीवी की कोख में
छोड़ कर चल देता है अपना बेटा
होने को जार-जार
किसी दूसरे की बीवी,
रेखा की बाहों में
बनने को वापस
"देवता से इंसान"
हमारे पास उसकी बेचारगी के लिए
होती है हमदर्दी
और तमाम-तमाम तरीके
उस लाचारगी को सही ठहराने को
और सही ठहराने से भी ज्यादा
कोशिश करते हैं हम उसे समझने की
कि कुछ तो वजह रही होगी
जो किया होगा उसने ऐसा
लेकिन
असल जिंदगी में, हमारे इर्द-गिर्द
होता है जब भी ऐसा
तो हम कुल्हाड़ी, चापड़, बांका, चाकू, बल्लम
थूंक, गाली और घृणा से
काट डालते हैं
हर 'वॉना-बी' रेखा और अमिताभ को
बोल कर शोहेदा, आवारा और छिनार
क्यूंकि वो
केन्द्र बिंदु नहीं होता
होता है तो बस
एक अदना सा
साइड का किरदार
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