Friday 27 December 2013

ज़िक्र

उजला-उजला सूरज आकर, टिम-टिम तारे लूट गया 
छोटे-छोटे बच्चों को वो मोटा बस्ता लूट गया 

सकरी थी ये पगडंडी पर खेतों तक तो जाती थी 
कच्ची-कच्ची गलियों को वो पक्का रस्ता लूट गया 

माना थे बेकार मगर, हर रात लौट तो आते थे 
अच्छे-भले 'पिण्ड' को मेरे, मुल्क 'कनाडा' लूट गया 

मेरे कच्चे घर से चिढ़कर, वो डाकू भी लौट गया 
तिनका-तिनका जोड़ा था, इक, वर्दी वाला लूट गया 

पूरी तरह नशे में धुत, मैख़ाने का हर बंदा था 
तेरा ज़िक्र चलाकर हमको होश में आना लूट गया

बचपन के जिगरी थे दोनों, साथ निवाला खाते थे 
इन्हें 'चुनावी' मौसम में, मज़हब समझाना लूट गया  

जाने से अनजान भला, वो बूढ़ा ख़ुश तो रहता था 
बूढ़ी आँखों पर उसको, चश्मा चढ़वाना लूट गया 

1 comment:

  1. Umda krati Nikhil bhai. REquest you to kindly review my blog http://bulbula.blogspot.in/2014/12/blog-post_18.html?m=1

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