अपने आख़िरी दिनों में,
अपनी बकेट लिस्ट
टिक करते हुए,
मैं दुनिया के सात अजूबे
देखना. नहीं चाहता.
न ही यूरोप के सुन्दर देश,
न ही जंगल, नदियाँ, पहाड़.
न इमारतें, मोन्यूमेंट, महल
पेंटिंग्स, स्कल्पचर या पिरामिड
अपनी बकेट लिस्ट
टिक करते हुए,
मैं दुनिया के सात अजूबे
देखना. नहीं चाहता.
न ही यूरोप के सुन्दर देश,
न ही जंगल, नदियाँ, पहाड़.
न इमारतें, मोन्यूमेंट, महल
पेंटिंग्स, स्कल्पचर या पिरामिड
मैं चाहता हूँ, कि
अपने आख़िरी दिनों में
मैं बच्चों के किसी स्कूल जाकर
रोज़ाना तय समय से पहले
छुट्टी की लम्बी घंटी बजा दूं
और स्कूल के बच्चों को
बे-इन्तहा ख़ुशी से दौड़ते,
कूदते, फाँदते, खिलखिलाते
तब तक देखता रहूँ,
जब तक कि हो न जाएँ वो,
नज़रों से ओझल
अपने आख़िरी दिनों में
मैं बच्चों के किसी स्कूल जाकर
रोज़ाना तय समय से पहले
छुट्टी की लम्बी घंटी बजा दूं
और स्कूल के बच्चों को
बे-इन्तहा ख़ुशी से दौड़ते,
कूदते, फाँदते, खिलखिलाते
तब तक देखता रहूँ,
जब तक कि हो न जाएँ वो,
नज़रों से ओझल