Sunday 27 October 2013

बिना शीर्षक वाली कविता

चाँद
हर सहर
सूरज निकलने से 
न बुझा 

बुझा तो 
इस गाँव में 
बिजली के आने से

Tuesday 8 October 2013

आसमां का दुपट्टा

मैं जिसे 
चाँद समझता था
वो 'पैबंद' निकला !

कर गया था रफ़ू, कोई 
आसमां का दुपट्टा 
हर वो चीज़, जिसे हम 
छू नहीं सकते... 

हसीं लगती है !