Friday 29 November 2013

कच्ची अम्बियों के पतंगे

हमने बना लिए 

पक्के मकान
सर्दी-गर्मी से महफ़ूज़ 

पक्के चेहरे 
गम-ओ-ख़ुशी से महफ़ूज़ 

पक्के इरादे 
टूटने-बिखरने से महफ़ूज़ 

पक्के देश
पड़ोसियों से महफ़ूज़ 

पक्के इंसान 
इंसानों से महफ़ूज़ 

पक्के सीने 
धडकनों से महफ़ूज़ 

पक्के दिमाग 
दिलों से महफ़ूज़ 

पक्के हाँथ 
चूड़ियों से महफ़ूज़ 

पक्के बुढ़ापे 
बचपने से महफ़ूज़ 

पक्के छज्जे 
बारिशों से महफ़ूज़ 

हमने बना लिए 
पक्के-पक्के... 

हमने... 

सब कुछ इतना 
पक्का कर लिया 
अपने आस-पास 
और अपने अन्दर 

कि कल मायूस लौट गया 
एक कारवाँ
काठ के इस, 
कठोर जंगल से 

जिसमें कुछ तितलियाँ थी 
कुछ परिंदों के नन्हें बच्चे थे 
और कुछ पतंगे, जो सिर्फ़
कच्ची अम्बियों पे मंडराते हैं

Tuesday 5 November 2013

शून्य

मुझे अनंत की चाह नहीं है 

मैं तुम्हारे गर्भ में समा कर 
चाहता हूँ 
शून्य हो जाना 

शून्य, 
जिसकी शून्यता 
अनंत हो !