मत सुना मेरे यार !
क्रान्ति की उबासी
बस्ती-जंगल उदासी
उन्नीस सौ चौरासी
क्यूँ हुआ प्लासी
रियैलिटी की फांसी
फिलॉसफी की खांसी
मत सुना !
बस्ती-जंगल उदासी
उन्नीस सौ चौरासी
क्यूँ हुआ प्लासी
रियैलिटी की फांसी
फिलॉसफी की खांसी
मत सुना !
यूँ ही झूठ-मूठ
कोई प्यारा सा
यूटोपिया ही कह दे !
कोई प्यारा सा
यूटोपिया ही कह दे !
कह दे, कि ये बच्चे
उम्र में कभी बड़े नहीं होंगे
कह दे, कि ये पंछी
किसी बहेलिए से नहीं फंसेगे
कह दे, कि ये जुगनू
कभी अकेले नहीं पड़ेंगे
कह दे, कि ये कनेर
यूँ लावारिस नहीं सड़ेंगे
उम्र में कभी बड़े नहीं होंगे
कह दे, कि ये पंछी
किसी बहेलिए से नहीं फंसेगे
कह दे, कि ये जुगनू
कभी अकेले नहीं पड़ेंगे
कह दे, कि ये कनेर
यूँ लावारिस नहीं सड़ेंगे
यार यूँ ही झूठ-मूठ
कह न !
कह !
कि आज भी
लोग-बाग़
कह न !
कह !
कि आज भी
लोग-बाग़
क़िताबों में लाल गुलाब रखते हैं
टूटते तारों से आरज़ू करते हैं
चिट्ठियाँ-पोस्टकार्ड लिखते हैं
रातों का आसमान तकते हैं
क्लीशे वाली मुबब्बत करते हैं
बुतों के अलावा भी इबादत करते हैं
कहानियाँ सुनाओ तो सुनते हैं
मरे नहीं हैं, ये ख़्वाब बुनते हैं
टूटते तारों से आरज़ू करते हैं
चिट्ठियाँ-पोस्टकार्ड लिखते हैं
रातों का आसमान तकते हैं
क्लीशे वाली मुबब्बत करते हैं
बुतों के अलावा भी इबादत करते हैं
कहानियाँ सुनाओ तो सुनते हैं
मरे नहीं हैं, ये ख़्वाब बुनते हैं
तो क्या हुआ कि इनमें से
एक-एक बात झूठ है !
गप्प है !
लफ्फाज़ी है
एक-एक बात झूठ है !
गप्प है !
लफ्फाज़ी है
पर फिर भी
कह दे न !
कह दे न !
यूँ कि सुकून से
जिए हुए
बहुत दिन हुए !