Wednesday 18 September 2013

दो दूनी चार

दो और दो को जोड़, चार समझ बैठे 
दिल्लगी को तुम भी, प्यार समझ बैठे 

हर किसी को हो इश्क़, कहाँ ऐसी किस्मत 
ज़रा सी हरारत को, बुख़ार समझ बैठे

Monday 16 September 2013

वो छोटी सी बच्ची

वो छोटी सी बच्ची 
अपनी फ्रॉक में 
पंखों को छिपाए हुए आई 

गालों में गुब्बारे भरे हुए 
ज़मीन से दो बालिश्त ऊपर 
फ्री-फ्लोट सी करती हुई, आई 

थोड़ा मचकती, मटकती, नाचती 
खिलखिलाकर हंसती थी, इतना 
कि हंसी के धक्के से
गिर ही जाती थी

वो आई और मेरी कविता में
छोटी 'इ' की मात्रा बनकर,
शामिल हो गई

पत्तों पर सिमटी
ओस की बूँद की तरह

वो छोटी सी बच्ची
आती है तो सुकून होता है
कि लिख देता हूँ, कुछ ऐसा

जो जिंदा भी है,
उड़ता-मुस्कुराता,
और तैरता भी

कागज़ के पन्नों पर

Saturday 7 September 2013

मोहोब्बत का स्कूल

ये तितलियाँ
ताउम्र पढ़ती रहती हैं 
फूलों की क़िताबें 

पंखुड़ियों के पन्नों में 
आँखें गड़ाए
मोहोब्बत की इबारत
बांछ्ती फिरती हैं

एक फूल से दूसरे फूल
एक स्कूल से दूसरे स्कूल

Sunday 1 September 2013

मेरी कविता अश्लील है

मेरी कविता में,

नहीं हैं, 
फिलॉसफी 
ज्ञान, फ़लसफ़ा, दर्शन 
लम्बी-लम्बी पंक्तियाँ
आलोचकों और समीक्षकों की सीख
एब्स्ट्रैक्ट का फूलदान
मुशायरों की लॉबी
ढंग, क़ायदा, कानून
पी.एच.डी., डॉक्टरेट की थीसिस
साहित्य के रहनुमाओं की दाद
अर्ज़, शुक्रिया, इरशाद
व्याकरण, बहर, मात्रा
समाज की चिंता,
जंगल, नहर, खदान
पुरानी कविता का जनाज़ा
और नई कविता का बर्थडे केक
प्रयोगवाद, साम्यवाद, समाजवाद
एजेंडा, मसला, मतला
दावा, मुद्दा, तुर्रा

मेरी कविता 'हैंगओवर' है

क्योंकि वो गोल्ड फ्लेक,
ट्यूबौर्ग, रॉयल स्टैग, ओल्ड मौंक
तुम्हारी ख़ूबसूरती
और तुम्हारे इश्क़ के
नशे से उपजी है
गेंहू, बाजरा और जौ के सड़ने से
पकी 'शराब' की तरह

मेरी कविता अश्लील है

क्योंकि वो आज के
नाज़ुक क्रांतिकारी माहौल में भी
प्यार-मोहोब्बत की बात करती है
छाती के उभार पर ग़ज़ल कहती है
और तुम्हारे बालों के घुँघराले होने पर
सौ करोड़ की जवानी
और जिस्मो-जान छिड़कती है

मेरी कविता बत्तमीज़ है

क्योंकि वो लोगों को
अनशन करने के लिए
सड़कों पर नहीं बुलाती
आन्दोलन का बिगुल नहीं फूंकती
अलबत्ता तुम्हें ही 'ज़ाइटगीस्ट' बताती है

मेरी काविता ब्लाफेमी है, नास्तिक है

क्योंकि वो धर्म को नहीं मानती
मंदिर नहीं जाती
मस्ज़िद नहीं जाती
लोगों को धर्म-निरपेक्षता नहीं सिखाती
उल्टा, तुम्हें और सिर्फ़ तुम्हें
ख़ुदा बताती है
और इश्क़ को बतौर मज़हब
स्थापित करती है

मेरी कविता अनाथ है,

क्योंकि वो इस दुनिया के
किसी बाप के नहीं लिखी गई
बल्कि इस दुनिया के
सबसे छोटे सबसेट
'मैं' और 'तुम' के लिए लिखी गई है
और उसे पढ़ते भी
सिर्फ़ 'तुम' और 'मैं' हैं

मेरी कविता गूंगी है,

क्योंकि उसे सुनने वाले बहरे हैं
एक लम्बे राजनीतिक भाषण में
आई हुई जनता की तरह
जिन्हें 'दस' रूपए देकर
चार घंटे तशरीफ़ रखने को बुलाया है

मेरी कविता अधूरी और लम्बी है,

क्योंकि उसे ये नहीं पता
कि शुरू होने के बाद
कब ख़तम हुआ जाए
ताकि लोगों को उबकाई न आए
और वो मेरी तुम्हारी दिल्लगी को
अश्लीलता न कह दें

लेकिन,

मेरी कविता,
सच्ची है,
क्योंकि मैं
नशे में हूँ !

मेरी कविता,
सबसे सुन्दर है

क्योंकि मेरी कविता में
तुम हो !

मेरी कविता,
जिंदा है

क्योंकि
हर मरे हुए
ज्ञान, घर्म, फिलौस्फी, दर्शन, मज़हब
के इस दौर में

सिर्फ़ तुम जिंदा हो
और तुमने,
मेरी कविता में
जान फूंक दी है .....