जानती हो ?
डर बस इस बात का है
कि एक दिन
सब 'क्लीशे' लगने लगता है
डर बस इस बात का है
कि एक दिन
सब 'क्लीशे' लगने लगता है
और, चीज़ी,
इमप्रैक्टिकल,
बचकाना हो जाता है
इमप्रैक्टिकल,
बचकाना हो जाता है
न मालूम क्यों, पर उन्हें
बात-बात पर, महबूबा को
"आई लव यू" कह देना
अब कूल नहीं लगता
बात-बात पर, महबूबा को
"आई लव यू" कह देना
अब कूल नहीं लगता
पहले "कुछ कुछ होता है"
पर बहुत कुछ होता था
पर अब पसंद नहीं आता
लाल रंग, नाइंटीज़, गुब्बारे
चोपड़ा या करन जौहर
पर बहुत कुछ होता था
पर अब पसंद नहीं आता
लाल रंग, नाइंटीज़, गुब्बारे
चोपड़ा या करन जौहर
तुम भी तो कहती हो, कि
मुझे "बाबू" या "जानू" मत कहा करो
कितना चीज़ी लगता है !
मुझे "बाबू" या "जानू" मत कहा करो
कितना चीज़ी लगता है !
"दफ़्तर से इतना छुट्टी मत लिया करो"
"काम ज़्यादा ज़रूरी है"
"और हम अब बच्चे नहीं रहे"
"काम ज़्यादा ज़रूरी है"
"और हम अब बच्चे नहीं रहे"
वो सब भी यही कहते हैं, कि
हर काम की एक उमर होती है
और होता है, वक्त का तकाज़ा
हर काम की एक उमर होती है
और होता है, वक्त का तकाज़ा
कि करियर और एम्बिशन
ज़्यादा ज़रूरी होता है
खुली छत पर लेटकर
सुकून से, रात भर
खुला आसमान तकने की
बचकानी सी ख्वाहिश से
कहीं ज़्यादा ज़रूरी
ज़्यादा ज़रूरी होता है
खुली छत पर लेटकर
सुकून से, रात भर
खुला आसमान तकने की
बचकानी सी ख्वाहिश से
कहीं ज़्यादा ज़रूरी
क्या मालूम ?
होता ही होगा शायद !
पर डर तो लगता है न !
होता ही होगा शायद !
पर डर तो लगता है न !
डर !
कि एक दिन
सब 'क्लीशे' लगने लगता है
सब 'क्लीशे' लगने लगता है
और, चीज़ी,
इमप्रैक्टिकल,
बचकाना हो जाता है
इमप्रैक्टिकल,
बचकाना हो जाता है