Monday 16 September 2013

वो छोटी सी बच्ची

वो छोटी सी बच्ची 
अपनी फ्रॉक में 
पंखों को छिपाए हुए आई 

गालों में गुब्बारे भरे हुए 
ज़मीन से दो बालिश्त ऊपर 
फ्री-फ्लोट सी करती हुई, आई 

थोड़ा मचकती, मटकती, नाचती 
खिलखिलाकर हंसती थी, इतना 
कि हंसी के धक्के से
गिर ही जाती थी

वो आई और मेरी कविता में
छोटी 'इ' की मात्रा बनकर,
शामिल हो गई

पत्तों पर सिमटी
ओस की बूँद की तरह

वो छोटी सी बच्ची
आती है तो सुकून होता है
कि लिख देता हूँ, कुछ ऐसा

जो जिंदा भी है,
उड़ता-मुस्कुराता,
और तैरता भी

कागज़ के पन्नों पर

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