वो छोटी सी बच्ची
अपनी फ्रॉक में
पंखों को छिपाए हुए आई
गालों में गुब्बारे भरे हुए
ज़मीन से दो बालिश्त ऊपर
फ्री-फ्लोट सी करती हुई, आई
थोड़ा मचकती, मटकती, नाचती
खिलखिलाकर हंसती थी, इतना
कि हंसी के धक्के से
गिर ही जाती थी
वो आई और मेरी कविता में
छोटी 'इ' की मात्रा बनकर,
शामिल हो गई
पत्तों पर सिमटी
ओस की बूँद की तरह
वो छोटी सी बच्ची
आती है तो सुकून होता है
कि लिख देता हूँ, कुछ ऐसा
जो जिंदा भी है,
उड़ता-मुस्कुराता,
और तैरता भी
कागज़ के पन्नों पर
अपनी फ्रॉक में
पंखों को छिपाए हुए आई
गालों में गुब्बारे भरे हुए
ज़मीन से दो बालिश्त ऊपर
फ्री-फ्लोट सी करती हुई, आई
थोड़ा मचकती, मटकती, नाचती
खिलखिलाकर हंसती थी, इतना
कि हंसी के धक्के से
गिर ही जाती थी
वो आई और मेरी कविता में
छोटी 'इ' की मात्रा बनकर,
शामिल हो गई
पत्तों पर सिमटी
ओस की बूँद की तरह
वो छोटी सी बच्ची
आती है तो सुकून होता है
कि लिख देता हूँ, कुछ ऐसा
जो जिंदा भी है,
उड़ता-मुस्कुराता,
और तैरता भी
कागज़ के पन्नों पर
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