Monday 30 December 2013

आधा-पौना

हद में रह के करना हो तो, इश्क़ मेरी जाँ न करिए 
यूँ आधा-पौना करना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए 

उड़िए तो इतना उड़िए, कि आसमान से गले मिलो 
बस उस छज्जे तक उड़ना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए 

शहसवार बन कर लड़िये, मैदान-ए-जंग में डरना क्या
जो घुटनों के बल चलना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

कहते हैं आग का दरिया है, ये इश्क़ नहीं आसान 'जिगर',
जो डूबे बिना उभरना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

आगे-आगे देख मियाँ, कुछ 'मीर तकी' से सीख ज़रा
यूँ अभी-इब्तिदा रोना है, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

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