Monday, 23 December 2013

गुंचा

बड़ा दिलकश था वो क़िस्सा, मगर सच्चा नहीं था 
यूँ तो मासूम था, बेहद, मगर बच्चा नहीं था 

कि इस बागीचे में था फूल, हर इक किस्म का, पर 
बला का ख़ूबसूरत था, मगर कच्चा नहीं था 

तेरी भी याद में इक 'ताज' बनवाते मगर तू
भला सूरत का था, सीरत से पर, अच्छा नहीं था 

बड़ा हल्ला था तेरे, चाँद होने का, फ़लक में 
कि फिर जो रात बीती, दिन में क्यों चर्चा नहीं था 

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