आओ, फिर एक रात
तुम,ओस की बूँद हो जाओ
और मैं,
गुलमोहर का पत्ता
हो लूं
तुम्हें मोती सी
महफ़ूज़ भी रक्खूं
तो बस इक रात के लिए
तुम्हें पनाह भी बख्शूं
तो बस इक रात के लिए
सुबह,
तुम्हारा वजूद
हो भी शायद
और नहीं भी
शायद
ग़र, जो हो, तो
बस उस तलक
जिस तलक
मेरा वज़ूद हो - इन्शाह अल्लाह !!
No comments:
Post a Comment