अमाँ छोड़ो मियाँ
तुम्हे, मैं
समझ नहीं आऊंगा
"औक़ात" भी कोई चीज़ होती है
और
ख़ुदा-ना-खाँसता
आ ही गया तो
ख़ामखाँ
मेरी ही क़ाबिलियत
रंडी बनके
शर्मिंदा होगी
बेहतर होगा, कि,
तू मेरा भरम रख ले
और मैं रखूँ तेरा
शबबाख़ैर
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