हर ज़मात के
दो-चार-चुनिन्दा
सिरफ़िरे लोगों का
"हगा" हुआ
बटोरने का जिम्मा
पूरी ज़मात पर होता है
और ये सुनिश्चित करने को,
कि ज़मात
उनका "हगा" हुआ
बटोरने से
इनकार ना करे
समाज के ठेकेदार
और लम्बरदार
एक चौकीदार खड़ा कर देते हैं
जिसे अदब से हम
"मज़हब" कहते है
जब-जब
इन सरफिरों के पेट में
मरोड़ें उठती हैं
कश्मीर या गोधरा
चौरासी या अयोध्या
बोस्निया-हर्जेगोविना
यहूदी या चेचन्या
वियतनाम या कोरिया
लट-पटा जाता है
गंद-फंद से
और पूरी की पूरी
ज़मात
चौकीदार की देख-रेख में
जुट जाती है
उन चंद सरफिरों का
"हगा" बटोरने में
और बिना इनकार किए
उसे
इंसानियत के चेहरे पर
दोनों हाथ से
लेपने में
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