Friday 30 August 2013

इग्नोरेंस ही ब्लिस है

कोशिश किया करो 
कि तुम्हारे आँख-कान बंद रहें
जो भी घट रहा है, उससे 
रज़ामंद रहें

इसी में सहूलियत है
क्यूंकि, इग्नोरेंस ही ब्लिस है 

नहीं तो खतरा रहता है,कि 
गर जो जान गए सब कुछ 
तो कल को 
नक्सलवादी ही बन बैठे

या फिर उनकी हम-दर्द, 
अरुंधती रॉय बन बैठे 

उसमे अदद खतरा है,

और वो ये, कि लोग-बाग़
बहस और समय से बचने के लिए 
"शी इज ए बिच"  कह के निकल जाएँगे

इसीलिए, 
कोशिश किया करो 
कि तुम्हारे आँख-कान बंद रहें
जो भी घट रहा है, उससे रज़ामंद रहें

अन्यथा, 

ये भी हो सकता है कि, 
लगोगे कोशिश करने 
आमिर खान की तरह 
'सत्यमेव जयते' चीखने की 


फिर तो चीर-फाड़ ही खाएंगे,
अहल-ए-दुनिया  
क्यूंकि, उपदेश देना 
सिर्फ उनकी बपौती है 


उपदेश, 
सिर्फ पान की दुकानों 
और दारू की मेजों पर 
चार लड़कियों को "रंडी" कहने के साथ 
डेज़र्ट की तरह 
बाटने की चीज़ है


क्यूंकि, वो वहीँ 
दुकानों और मेजों पर छूट जाता है 
और अगले दिन 
उसकी एक भी छूटी हुई  'बाईट' के संक्रमण से   
जुगाली से     

नक्सल वादी बनने का खतरा नहीं रहता .....

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