Friday 30 August 2013

क्षणिकाएँ

1.   
अब तो सिनेमा में भी 
हैप्पी-एंडिंग नहीं होती

कहानियाँ घिसटती रहती हैं 
बोरिंग आइडेंटिटी क्राइसिस के इर्द गिर्द 

विलेन मारे नहीं जाते 
प्रेमी-प्रेमिका मिलाए नहीं जाते 

मायां वालों ....2012 आ गया क्या ?

....

सचमुच?




2.     
वक्त ने बहोत सी बातें बतलाईं थीं 

ताज़ी, बासी 
तीखी, नमकीन, सादी 

उम्र पकते-पकते 
सब बातें भाप में उड़ गयीं 

कड़छुड पे छूटी 
तो बस एक बात... 

"मौत इन-एविटेबल है" 

ज़ेहन को कुरेद सी गई थी 

"मेरा बाप चोर है"  की तरह 




 3.
हम इंसान लोग 
भगवान के 'गिनी पिग' हैं

हमपर एक्सपेरिमेंट किए जाते हैं 
ताकि ये मालूम किया जा सके 
कि प्रस्तुत हाईपोथेसिस
'सकारात्मक' है अथवा 'नकारात्मक'

लाख साल से हम एक उपकरण हैं 
ये साबित करने का 
कि भगवान के घर में 
देर है लेकिन अंधेर नहीं 

अबे साले गिनी पिग 
शुकर मना
कि इस महान एक्सपेरिमेंट का 
तुम उसका हिस्सा हो 

गिनी पिगों की ज़िन्दगी से ज्यादा
महत्वपूर्ण 
हाईपोथेसिस होती है 




4.
अरे महाराज भगवान !!
आप इधर झुट्ठे परेशान हैं 
'धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः' से 

और उधर दुनिया मस्त है 
लोलिंग  और ट्रोलिंग  में 

राम बन कर या श्याम बन कर 
'तदात्मानम सृजाम्यहम'  करने 

फिर कभी आना 

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