Friday 30 August 2013

मिट्टी दा बावा

माँ, 

अपनी क्या कहूँ 
गर जो तुम, 
मिट्टी के लोंदे को भी 
सींच देती 

अपनी छाती से

उसके पोर-पोर से
"लहलहाकर" 
इंसान फूट पड़े होते

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