Friday 30 August 2013

मार देब गोली... केहू ना बोली...

आए गए कलंदर कितने,
कितनों ने औकातें तोली
पैल्वानों के लंगोटों की,
खैंच बना दी इसने चोली
जिन्न भूतणी वाले भी तो,
मालिक के ही हैं हमजोली
मार देब गोली...
केहू ना बोली...

मूंछण के लश्कारे वाले
सूरत हैगी किन्नी भोली
करिया सांप संपोलों के,
फ़ुसकारे सी है इनकी बोली
ढाई घर घोड़े ने किन्ने,
राजाओं की पोलें खोली
मार देब गोली...
केहू ना बोली...

अग्गे पिछ्छू कौनो नाही,
फ़िर भी हैं ये पूरी टोली
लाल लंगोटण वालों की भी,
इनके आगे हिम्मत डोली
छू काली कलकत्ते वाली,
इनकी हैंगी सखी सहेली
मार देब गोली...
केहू ना बोली...

ताव चढ़े तो ऐसी तैसी,
कर न सके कोई बीच-बिचौली
अड़ जाएं जो चौराहे तो,
लाल लहू की खेलें होली
सुर्ख पठारी छाती इनकी
फ़िर भी दिल है पोली पोली
मार देब गोली...
केहू ना बोली...

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