Friday 30 August 2013

तब थोड़ी थोड़ी बात समझ में आएगी

जब तुमको भी रातों को नींद न आएगी
तब थोड़ी थोड़ी बात समझ में आएगी
अभी कहे देते हो हमको झट से मजनू
फिर हलक़ लांघ के बात जुबां ना आएगी

एक बखत था हम भी साहब 'फैंटम' थे
ना अंदेशा कम्बख्त दिल्लगी छाएगी !!
पतलूनों पर चड्डी हमने भी है पहनी
क्या ख़बर ससुर ये 'बांकेलाल' बनाएगी 

"क़दमों दुनिया थी - मुह में रजनीगंधा" था
अब तुमको भी 'खैनी' जैसा घिसवाएगी
जब नाच ना जाने आँगन टेढ़ा नाचोगे तुम
तब थोड़ी थोड़ी बात समझ में आएगी

पहले हमको भी था बस कुछ मद्धम 'फ़ीवर'
क्या पता 'हरारत' भेजे तक चढ़ जाएगी !!
गब्ब्बर सिंह के तापमान के पट्ठे को भी
जब पसली भर ए.के.हंगल कर जाएगी...

तब थोड़ी थोड़ी बात समझ में आएगी.

अभी कहे देते हो हमको झट से मजनू
फिर हलक़ लांघ के बात जुबां ना आएगी

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