मानता हूँ, अहले-दुनिया बदल गए हैं
हादसा हुआ था, ज़रा, संभल गए हैं
मुश्ताक़ नहीं थे जो इन्कलाबों में
सीले सीले से जज़्बात, मचल गए हैं
घरौंदे-घोसलों से न निकलने वाले पाखी
सूरज के कूचे तलक टहल गए हैं
कई बरसों के सब्र-तलब, ये मेरे यार
ले सीने में इन्कलाब, दहल गए हैं
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