'पंख', सिर्फ़
चिड़ियों को ही
नहीं होते
'पंख', कभी-कभी
ऐसे निकल आते हैं
जैसे, ज़ेबों से
मूंगफलियाँ !
जैसे, खुजाने से
बलतोड़ !
या मूतने से
कुकुरमुत्ता !
पंख उग आते हैं
बरसात में बिलबिलाते
चींटे को
उसे "ततैय्या" बनाने को
पंख उग आते हैं
घर में मुश्किलें आने पर
पापा को
उन्हें "सुपरमैन" बनाने को
पंख उग आते हैं
नीला रिबन बाँधे,
स्कूल जाती, गुड़िया को
उसे "परी" बनाने को
पंख उग आते हैं
आदिवासियों की
बन्दूक की बैरल को
उन्हें "माओवादी" बनाने को
'पंख', सिर्फ़
चिड़ियों को ही
नहीं होते
पंख, कुछ इस तरह
निकल आते हैं
जैसे, मसूढ़ों को चीरकर
अक्कल दाढ़ !!
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