यार बीरबल
तुम्हारी खिचड़ी की
बटोई की तरह
मेरी भी कुछ कविताएँ
एक अरसे से
धीमी आंच पर टंगी हुई हैं
ज़हन के तंदूर में,
अब, या तो
इन्हें पकाने की जुगत बता दो
या फिर भेज दो
वो सरफिरा राजा अकबर
उसके ज़ुल्म के अहसास को !
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