Friday 30 August 2013

लपक बबुरिया लपक

कभी एक दुपहरी मेरी है,
कोई एक सहर चल तू ले ले
कभी मैं वज़ीर कभी तू पैदल
बस शह पड़ने की देरी है
लपक बबुरिया लपक आज,
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी जीवन तेरा आल्हा है,
कभी नाक-कटैया खेल हुआ
कोई कंचा तू भी जीत गया,
कोई तेरी गोटी मेरी है
लपक बबुरिया लपक आज,
कन्नी कटने की देरी है ...

कोई महफ़िल तुझ पर लोट पड़ी,
कोई आंगन टेढ़ा फ़िसल गया
कभी डमरू लिए मदारी तुम,
कभी चार गुलाटी तेरी है
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी चौबे छब्बे बन बैठे,
कभी दूबे बन कर लौटे हैं
कोई एक पटाका फ़ुस्स हुआ,
कोई चुटपुटिया रण-भेरी है
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी घुंघरू बांधण चले रजा,
कभी उनकी ही नथ उतरी है
कोई नटवर ठग के लूट गया,
कोई नंग धड़ंग अघोरी है
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

कभी सूप बजे तो ऐंवई है,
कभी चलनी छेदन छींक गई
कोई लौटा बनकर फ़न्ने खां,
कोई करके चला दिलेरी है
लपक बबुरिया लपक आज
कन्नी कटने की देरी है ...

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