बड़ा हसीं था दौर कि जब ना 'हाय-बाय' चलता था
इन्ने भोले लोग, ना कोई 'मिस यू' ही कहता था
टलीफून पर 'हेलो' नहीं बस धड़कन ही सुनते थे
बाकी बखत कल्पना से ही ख़यालात बुनते थे
नज़रें क्या मिल जाएं, तगड़ा सा 'करंट' लगता था
हर हिचकी उनकी ही यादों का 'वारंट' लगता था
ख़त तो ख़त, मेघों के ज़रिये जाते थे संदेसे
कागा सन्ग मिला करते थे आने के अन्देसे
'टैडी बियर' नहीं बस 'जाँ' देना ही एक चलन था
मैं तुझमे, तू मुझमे, इतना भीतर तलक मगन था
तोहफ़े लेने देने की जैसे किसको फ़ुरसत थी
तू मेरी थी वही ज़रूरत से ज्यादा किस्मत थी
बड़ा हसीं था दौर कि इश्काँ-कारोबार सरल था
इश्क़-काम था काम-इश्क़, ना दूजा कोई ख़लल था
वहीँ आज का वक़्त निगोड़ा, किसको कब फुर्सत है
इश्क़ मुश्क तो दूर, सांस जो ले बैठे ज़ुर्रत है
वक़्त मियाँ, हो सके अगर, कुछ हौले ज़रा बहो तुम
तेरी भी थी माशूका, ना थी क्या, ज़रा कहो तुम ?
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