Friday 30 August 2013

गुब्बारे

मंहगी तालीम ले कर 
एक  दो ''एक्स्ट्रा' सपने  
ठूस-ठूस कर भर लो 
तो छाती फूल सी जाती है

दारोगा के माफ़िक 

हसरतों में भी वज़न आ जाता है  

मूंगफली से भरी खद्दर की ज़ेब की तरह... 
सस्ते वाले सूटकेस की तरह...  
मेले के पीले वाले गुब्बारे की तरह...


लेकिन 'सपने' जितना हो सके 
हिसाब से भरा करो 

खादी की ज़ेबों का तागा कमज़ोर होता है 
भीड़ में 'चर्र' से फटकर 
बेज्ज़त कराता है 

सूटकेस भी ससुराल पहुँच कर 
ताने मारने वालों के सामने ही टूटता है 

पीला गुब्बारा  भी जब फूटता है 
तो बस थूंक लगा-लगा कर
इसके उसके सिर पर  
चुट-पुटिया फुलाने-फोड़ने के काम आता है  

नाहक इरीटेट करता है 


'सपने' जितना हो सके 
हिसाब से भरा करो ......

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