आपको हम ख़ुदा कर के,
ज़रा से इंसान हो लें
सामने आ बैठिये तो
आंख मल हैरान हो लें
इश्क़ की महफ़िल लगा के,
जन्नती फ़रमान हो लें
ऐरे-गैरों को दफा कर,
अकेले मेहमान हो लें
क्या करें हम आरज़ू,
क्यों बेवज़ह एहसान हो लें
क्या करेंगे जान का अब,
दो घड़ी बेजान हो लें
No comments:
Post a Comment