Friday 30 August 2013

मेरा कुछ सामान..

आज कुछ सामान लिए बैठा हूं
टटोलता हूं तो
तेरी कैफ़ियत है
जो हर रात
चांद के कटोरे से चुराकर
इकट्ठा की है 

तेरी छुअन है
जिसका ज़ायका
मेरी उंगली के
अखिरी कोने से
अभी तक चिपका है 

तेरी अखिरी टूटी
पलक का काला रेशम है
जिसके धागे से
मैंने एक बावला सा
सपना बांध रखा है 

तेरी एक ताज़ा
खिलखिलाहट भी है
जिसकी खनक से
मेरी अखिरी गज़ल
अभी तक ज़िन्दा है

तेरे रूठने का
एक मज़ेदार किस्सा भी
और साथ में
मेरे मनाने की
दिलचस्प कश्मकश भी है 

मेरा सबसे कीमती
पहला आंसू है
जो कि तेरे
कांधे से ढुलकने से पहले
बटोरा हुआ है 

एक खन्ज़र है
जिसे तेरी नज़र से
चुपचाप तोड़ा था
मेरी छाती पर
उसकी धार का निशान
अभी भी सुर्ख़ और ताज़ा है 

एक नमाज़ की दुआ भी है
जिसके पल्लू से
कबूल होने की अर्ज़ी
सिली हुई है 

कुछ एक फ़ुटकर
हांफ़ते हुए
घड़ी के लंगड़े कांटे हैं
जो तेरे इन्तज़ार में
चिढ़कर 
घड़ी से उखाड़े थे 

एक पनपता सा प्यार है...
एक तू है ..
और एक मैं भी ...

आज कुछ सामान लिए बैठा हूं .
सामान कीमती सा है .

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