कहीं किसी कोने में ,
वैधव्यतुषारावृता यथा विधुलेखा
तो कहीं दूब पर
लाल ओस की रेखा
कहीं किसी केसर क्यारी में
बेसुध तान्डव नर्तन
तो कहीं किसी के केशों का
वो नदी तटों पर कर्तन
मानव का दानव बनना
पैशाची रक़्त पिपासा
उन्मादों के पागलपन में
आयत फ़ुंकी धुंआ सा
वज़ू ख़ूनी शराबों से, दरकती ईदगाहों पर
करोगे क्या बसाकर आशियाने, कब्रगाहों पर
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