मैं बचपने में हर खेल में फिसड्डी हुआ करता था. लेकिन एक खेल ऐसा था जिसमें कोई भी मुझसे पार नहीं पा सकता था. खेल का नाम था - बीच वाली उँगली. मैं बाकी की तीन उँगलियों और अंगूठे के बीच, अपनी बीच वाली उँगली को ऐसे छिपा लेता था कि मजाल है कि कोई उसे ढूंढ पाए !
तुम लडकी हो इसलिए तुम्हें भी लगता था कि तुम खेलों में फिसड्डी ही साबित हो जाओगी. शायद इस वजह से तुम भी घंटों मेरे साथ वही खेल खेला करती थीं.
एक दिन तुमने बताया कि पिता जी का तबादला हो गया है और तुम शहर छोड़ कर जाने वाली हो. तुमने कहा कि मैं तुम्हें कहीं छिपा लूं. तुम संदूक में फिट नहीं हो पाई, इसलिए मैंने तुम्हें खटिया के नीचे छिपा दिया पर तुम्हारे पिता जी ने उसकी जालीदार निवाड़ में झांककर तुम्हें झट से खोज लिया.
और तुम चली गईं.
काश... उस दिन, मैं तुम्हें अपने अंगूठे और बाकी की तीन उँगलियों के बीच छिपा लेता !!
काश !!
so sweet..........
ReplyDeleteanu
Good one
ReplyDeletebhai Aap inna achha likh lete ho...
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