Sunday 10 July 2016

खरगोश का घर

मैं बड़े जतन से, ख़ुद के लिए
एक कविता लिख रहा हूँ,
शब्द पर शब्द रखकर
मात्रा-वात्रा लगाकर
उधर बच्चे खरगोश के लिए
बना रहे हैं घर
ईंटे पर ईंटा रखकर
पत्थर-वत्थर सटाकर
कविता, पूरी होकर
एक घर हो जाएगी
और घर पूरा होकर,
हो जाएगा एक कविता
मुझे और उस खरगोश को
अब अकेले नहीं रहना होगा

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