Thursday 7 July 2016

तलब

मुझे ख्वाहिश है
एक थ्री बी.एच.के. घर की
लम्बी सेडान कार की
अप्रेज़ल और प्रमोशन की
पिता को जल्दी रिटायरमेंट की
एक घंटा एक्स्ट्रा अख़बार पढने की
सुबह उठते ही चाय पीने की
राजू को पतंग लूटने की
मर्तबान में टैडपोल पालने की
सेंट वाली इरेज़र की
मिस कपूर को मालबोरो की
स्टेलाटोस और डायमंड की
सो सकने के अधिकार की
बाई को टाइम पे तनख्वाह की
दो सौ रूपए बख्शीश की
दीवाली, होली पे सूती साड़ी की
माँ को दोपहर की नींद की
सफ़ेद कपड़ों की साफ़ धुलाई की
दूध में अच्छी मलाई की
बुधिया को बारिश की
रबी, खरीफ़, जायद की
चावल में अच्छी फली की
दादी को मजबूत जोड़ों की
पक्के वाले नकली दांत की
कुम्भ में स्नान की
रुमझुम को अच्छी सेल्फ़ी की
बिना पिम्पल के चेहरे की
सब कुछ पिंक होने की
ख्वाहिश है, तलब है

सोचता हूँ, कि,
घर, कार, अख़बार,
चाय, मालबोरो, बख्शीश,
नींद, मलाई, इरेज़र
पतंग, फली, और दांत जैसी
छोटी-छोटी चीज़ों की तलब,
ज़िन्दगी को
कितना आसान बना देती है
और उनके पीछे
जुगनुओं की तरह
भागते-दौड़ते

हमें ज़िन्दगी के असल मायने
खोजने के लिए,
जूझना, उलझना, सोचना नहीं पड़ता
और एकदिन थककर, हताश होकर
गौतम बुद्ध नहीं होना पड़ता



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