भाड़े पर आए थे सैंया, मालिक बन कर बैठ गए
हमरे दिल पे चुपके-चुपके, कब्जा कर के बैठ गए
हमरे दिल पे चुपके-चुपके, कब्जा कर के बैठ गए
रेंट दिया न, लिखा पढ़ी कुछ, कोई अग्रीमेंट नहीं
छोटा सा था एक बिएचके, अपना कर के बैठ गए
छोटा सा था एक बिएचके, अपना कर के बैठ गए
बालकनी थे नैनन की जो, उसको भी हथियाए हैं
दुनिया भर को तकने-झकने, अखियाँ बसके बैठ गए
दुनिया भर को तकने-झकने, अखियाँ बसके बैठ गए
बैठ गए तो ऐसे जमकर, हिलते हैं, न डुलते हैं
लम्बा चक्कर लगता है, जी, पलथी धरके बैठ गए
लम्बा चक्कर लगता है, जी, पलथी धरके बैठ गए
No comments:
Post a Comment