Saturday 8 October 2016

बकेट लिस्ट

अपने आख़िरी दिनों में,
अपनी बकेट लिस्ट
टिक करते हुए,
मैं दुनिया के सात अजूबे
देखना. नहीं चाहता. 
न ही यूरोप के सुन्दर देश,
न ही जंगल, नदियाँ, पहाड़.
न इमारतें, मोन्यूमेंट, महल
पेंटिंग्स, स्कल्पचर या पिरामिड

मैं चाहता हूँ, कि
अपने आख़िरी दिनों में
मैं बच्चों के किसी स्कूल जाकर
रोज़ाना तय समय से पहले
छुट्टी की लम्बी घंटी बजा दूं
और स्कूल के बच्चों को
बे-इन्तहा ख़ुशी से दौड़ते,
कूदते, फाँदते, खिलखिलाते
तब तक देखता रहूँ,
जब तक कि हो न जाएँ वो,
नज़रों से ओझल

2 comments:

  1. Sir,
    I have read "Namak swadanusar". And I must say, you are deeply fascinated by kids, you can crave their innocence like a Sculptor

    ReplyDelete
  2. निखिल जी, मुझे आपके बारे में आज ही पता चला, सर्फिंग करते करते. आपको पढ़ कर लग रहा है कि आप मेरे बचपन के बिछड़े हुए मित्र हो. आपने जो कुछ भी लिखा है, उसमें कोई ऐसी बात नहीं जो मेरे साथ न हुई हो या मैंने सुनी या देखी न हो. आप ग़ज़ब कमाल हो.

    ReplyDelete