Friday, 12 September 2014

क़सम गैलीलियो की

याद है? ...

तुम्हें मैथ्स पसंद थी
लेकिन तुम्हारे खूंसठ बाप ने
तुम्हें दसवीं आते-आते
बायोलॉजी की गिरफ़्त में डाल दिया
और तुम मेंढक का पेट चीर-फाड़ कर
उसके मरे-बदबूदार-लिजलिजे शरीर को
माइक्रोस्कोप से देखती पढ़ती रही

मुझे बायोलॉजी पसंद थी
लेकिन मेरे इंजिनियर बाप ने
मुझे नवीं गुज़रते ही
गणित के पल्ले बाँध दिया
और मैं केसियो के कैलकुलेटर पे चढ़कर
सिंपल इंट्रेस्ट के कॉम्प्लेक्स सवाल
बग़ैर किसी इंट्रेस्ट हल करता रहा

आज,

दसवीं के कुछ बीस साल बाद
जब तुम अपने थुलथुल मरद की
तोंद की बायोलॉजी संभाल रही हो
और मैं अपनी टिपटॉप बीवी के
सोने के जेवरों के गणित में उलझा हूँ

तब,

"क़सम गैलीलियो की"
लाज़मी है
ये सोचना,
कि मेरे तुम्हारे
काइयाँ से दिखने वाले बाप

ग़ज़ब दूरदर्शी थे!

Thursday, 11 September 2014

हम नहीं फसेंगे

तुम आईं
बिलकुल उस शातिर
बहेलिये की तरह,

जाल पसराते हुए

मैं आया,
बिलकुल उन बुद्धू
चिरइयों की तरह

बात दोहराते हुए

"बहेलिया आएगा
बहेलिया दाना डालेगा
हम नहीं फसेंगे"

"बहेलिया आएगा
बहेलिया दाना डालेगा
हम नहीं फसेंगे"

हाय!
हमारी क़िस्मत!

तुम आईं, तुमने,
दाना भी नहीं डाला
और हम
दीवानगी की हद में
पलकों के जाल में
पाँवड़े बिछाकर

भूखे ही फँस गए!

Wednesday, 10 September 2014

रहि-मन-धागा

मेरे तुम्हारे
दरमियाँ
ये जो डोर है

उसमे 


गाँठ बन कर
ही सही

रह जाओ न !

'स्प्राउट्स'

कितनी ज़िद्दी हो!

यूं इतने हक़ से
बार-बार
दिल-ओ-दिमाग़ पर
इस तरह पनप आती हो
जैसे चने पर 'स्प्राउट्स'

'नमी' बड़ी बुरी चीज़ है!

दो-चार बूँद भी मिल जाए
तो रेगिस्तान को
गुलिस्ताँ होते
देर नहीं लगती

Monday, 8 September 2014

हारा रा जलाइ लौ

हारा रा जलाइ लौ भैया, हारा रा जलाइ लेओ
लौका-लाठी चौका-काठी मिन्टन मा जलाई देओ

पंडित जी की लुंगी जारो, वेदन को जलाई लेओ
जौनो कहे हराम मुहब्बत, आगिया मा जलाई देओ

मुल्ला की क़ितबिया जारो, ग्रंथन को जलाई लेओ
हमका तुमसे मिलने न दे, बंधन का जलाई देओ

पैसा बारो, कौड़ी जारो, बैंकों को जलाई लेओ
जौनो पूँजी जोड़ें लागे, भैन्चो को जलाई देओ

अपनी सोती अतमा जारो, थोड़ा तो जलाई लेओ
ठंडी है अंधेरी दुनिया, दीया तो जलाई देओ

दीया तो जलाई देओ भैया, हीया का जलाइ लेओ
हारा रा जलाइ लौ भैया, हारा रा जलाइ देओ