Monday, 30 December 2013

आधा-पौना

हद में रह के करना हो तो, इश्क़ मेरी जाँ न करिए 
यूँ आधा-पौना करना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए 

उड़िए तो इतना उड़िए, कि आसमान से गले मिलो 
बस उस छज्जे तक उड़ना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए 

शहसवार बन कर लड़िये, मैदान-ए-जंग में डरना क्या
जो घुटनों के बल चलना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

कहते हैं आग का दरिया है, ये इश्क़ नहीं आसान 'जिगर',
जो डूबे बिना उभरना हो, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

आगे-आगे देख मियाँ, कुछ 'मीर तकी' से सीख ज़रा
यूँ अभी-इब्तिदा रोना है, तो इश्क़ मेरी जाँ न करिए

Saturday, 28 December 2013

मर मिटा ....

वो मरे इंक़िलाब पर 
मैं एक ग़ज़ल पे 
मर मिटा 

वो मरे, तो, अमर हुए 
मैं मर मिटने पे 
मर मिटा

Friday, 27 December 2013

ज़िक्र

उजला-उजला सूरज आकर, टिम-टिम तारे लूट गया 
छोटे-छोटे बच्चों को वो मोटा बस्ता लूट गया 

सकरी थी ये पगडंडी पर खेतों तक तो जाती थी 
कच्ची-कच्ची गलियों को वो पक्का रस्ता लूट गया 

माना थे बेकार मगर, हर रात लौट तो आते थे 
अच्छे-भले 'पिण्ड' को मेरे, मुल्क 'कनाडा' लूट गया 

मेरे कच्चे घर से चिढ़कर, वो डाकू भी लौट गया 
तिनका-तिनका जोड़ा था, इक, वर्दी वाला लूट गया 

पूरी तरह नशे में धुत, मैख़ाने का हर बंदा था 
तेरा ज़िक्र चलाकर हमको होश में आना लूट गया

बचपन के जिगरी थे दोनों, साथ निवाला खाते थे 
इन्हें 'चुनावी' मौसम में, मज़हब समझाना लूट गया  

जाने से अनजान भला, वो बूढ़ा ख़ुश तो रहता था 
बूढ़ी आँखों पर उसको, चश्मा चढ़वाना लूट गया 

Monday, 23 December 2013

गुंचा

बड़ा दिलकश था वो क़िस्सा, मगर सच्चा नहीं था 
यूँ तो मासूम था, बेहद, मगर बच्चा नहीं था 

कि इस बागीचे में था फूल, हर इक किस्म का, पर 
बला का ख़ूबसूरत था, मगर कच्चा नहीं था 

तेरी भी याद में इक 'ताज' बनवाते मगर तू
भला सूरत का था, सीरत से पर, अच्छा नहीं था 

बड़ा हल्ला था तेरे, चाँद होने का, फ़लक में 
कि फिर जो रात बीती, दिन में क्यों चर्चा नहीं था 

Tuesday, 17 December 2013

इन्शाह अल्लाह !!


आओ, फिर एक रात 
तुम,ओस की बूँद हो जाओ 
और मैं,
गुलमोहर का पत्ता
हो लूं

तुम्हें मोती सी
महफ़ूज़ भी रक्खूं
तो बस इक रात के लिए

तुम्हें पनाह भी बख्शूं
तो बस इक रात के लिए

सुबह,
तुम्हारा वजूद
हो भी शायद

और नहीं भी

शायद

ग़र, जो हो, तो
बस उस तलक
जिस तलक
मेरा वज़ूद हो - इन्शाह अल्लाह !!