पहले यहाँ पतंगों को, कुछ बच्चे लूटा करते थे
एक कटे तो, उसके पीछे दसियों छूटा करते थे
आज पतंगे बे-वजहा बिजली खम्बों में फंसती हैं
फटी-फटी सी आँखों से न जाने किसको तकती हैं
सालों-साल टंगी रहती हैं, इतनी जिद्दी होती हैं
उस बुढ़िया के जैसे ये, कुछ कहती हैं, न रोती हैं
इसी आरज़ू में चिरपिर, करती हैं, के वो, आएगा
छुटका छुर्री देगा, तिस पर, मझला भाई उड़ाएगा
एक कटे तो, उसके पीछे दसियों छूटा करते थे
आज पतंगे बे-वजहा बिजली खम्बों में फंसती हैं
फटी-फटी सी आँखों से न जाने किसको तकती हैं
सालों-साल टंगी रहती हैं, इतनी जिद्दी होती हैं
उस बुढ़िया के जैसे ये, कुछ कहती हैं, न रोती हैं
इसी आरज़ू में चिरपिर, करती हैं, के वो, आएगा
छुटका छुर्री देगा, तिस पर, मझला भाई उड़ाएगा
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