ये निखिल सचान का रफ़ रजिस्टर है....इसमें उस वक़्त की कविताएँ हैं, जब मुझे लिखने का ख़ास सलीका नहीं था और आज की बातें है, जब आज भी मैं सलीका सीख ही रहा हूँ !
काश ता-उम्र सीखता रहूँ और इसी शौक़ में ज़िंदगी गुज़र जाए
Sunday, 29 June 2014
माचिस
भांति-भांति के लोग भतेरे, भांति-भांति की ख्वाहिश भांति-भांति बारूद भतेरे, एक अकेली माचिस !
No comments:
Post a Comment