वो बच्ची हर रात
"वन-टू-हंड्रेड"
तारे गिनती है
क्योंकि बाबा ने
उसकी उँगलियों के पोरों पर
सौ के आगे के "नंबर"
अभी तक सजाए नहीं हैं
"वन-टू-हंड्रेड"
तारे गिनती है
क्योंकि बाबा ने
उसकी उँगलियों के पोरों पर
सौ के आगे के "नंबर"
अभी तक सजाए नहीं हैं
वो रोज़ चाँद को भी गिनती है
जबकि आसमान में
ले-दे-कर बस एक ही
बोरिंग सा चाँद है
उसका अंगूठा
टब्बक-टब्बक, उछल-उछल
उँगलियों के पोरों पर
दौड़ता है तो, ये तारे
टिम-टिमा कर
"प्रेजेंट मैम" कहकर
अपनी हाज़िरी दर्ज़ करा देते हैं
मुझे फ़िक्र है कि
कि कल को वो बच्ची
बड़ी हो जाएगी
और "हंड्रेड" से आगे की
ख़तरनाक सी गिनती
स्कूल से या क़िताबों से
सीख आएगी
और तब, जब उसे
गिनने के लिए
अंगूठे से उँगलियों के पोरों को
छूने की ज़रूरत भी न होगी
उस दिन ये खेल
बोरिंग होकर
छत पर
लावारिस ही छूट जाएगा
और "मैम" को खोजता
"प्रेजेंट" सा वो तारा
बावला सा, हैरान सा
बालकनी के किसी कोने में
"एब्सेंट" ही टूट जाएगा
बहुत ही सुंदर कविता।बचपन के दिनों की यादें ताजा करती हुई। आपकी दोनों किताबें भी लाजवाब हैं ।
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