Saturday, 13 December 2014

सब आरज़ुएं जनानी

बाहों में दबा कर गुलाबी तकिया, सोते नहीं है
ये मर्द न जाने क्यों रातों में, रोते नहीं है ?
दिल में छुपाए फिरते हैं, सब आरज़ुएं जनानी
वही क्यों बनना चाहते हैं, जो ये, होते नहीं हैं

Friday, 21 November 2014

कोई प्यारा सा यूटोपिया !

मत सुना मेरे यार !

क्रान्ति की उबासी
बस्ती-जंगल उदासी
उन्नीस सौ चौरासी 
क्यूँ हुआ प्लासी
रियैलिटी की फांसी
फिलॉसफी की खांसी
मत सुना !

यूँ ही झूठ-मूठ
कोई प्यारा सा
यूटोपिया ही कह दे !

कह दे, कि ये बच्चे
उम्र में कभी बड़े नहीं होंगे
कह दे, कि ये पंछी
किसी बहेलिए से नहीं फंसेगे
कह दे, कि ये जुगनू
कभी अकेले नहीं पड़ेंगे
कह दे, कि ये कनेर
यूँ लावारिस नहीं सड़ेंगे

यार यूँ ही झूठ-मूठ
कह न !
कह !
कि आज भी
लोग-बाग़

क़िताबों में लाल गुलाब रखते हैं
टूटते तारों से आरज़ू करते हैं
चिट्ठियाँ-पोस्टकार्ड लिखते हैं
रातों का आसमान तकते हैं
क्लीशे वाली मुबब्बत करते हैं
बुतों के अलावा भी इबादत करते हैं
कहानियाँ सुनाओ तो सुनते हैं
मरे नहीं हैं, ये ख़्वाब बुनते हैं

तो क्या हुआ कि इनमें से
एक-एक बात झूठ है !
गप्प है !
लफ्फाज़ी है

पर फिर भी
कह दे न !

यूँ कि सुकून से
जिए हुए
बहुत दिन हुए !

Monday, 10 November 2014

Kissकी चिट्ठी आई ?

पिया हमें अपने होठों से, लिख दो छोटी चिट्ठी
पोस्ट करो हमरे गालों पर बतियाँ मिट्ठी-मिट्ठी
हाल चाल न कहना-सुनना, नाम-पता न लिखना
होठों का हो लाल लिफ़ाफ़ा, ताम-झाम न करना
तुम ही बनो डाकिया, आकर बाँछो, डाक हमारी
सबको जलने-भुनने देना, कहकर बात कँवारी
ऊँचा - ऊंचा बोल के पढ़ना, पास-पड़ोसी सुन लें
हम भी हों बदनाम, कहानी, वो भी थोड़ी बुन लें
रह जाएं हैरान, भला ये "किस" की चिट्ठी आई?
क्यूँ ये लड़की घूम रही है पगलाई - पगलाई ?

"मेड फॉर ईच अदर"

नहीं !
हम दोनों
"मेड फॉर ईच अदर"
नहीं है !
एक दूजे के लिए
प्रिंस-प्रिंसेस
परफेक्ट-फ्लॉलेस
राजा-रानी
खतम-कहानी
भी नहीं !
हम बस
सवाल-जवाब हैं
मैं एक कठिन सवाल
और तुम
एक आसान जवाब
जैसे नट का जवाब बोल्ट
मिर्च का जवाब शक्कर
साँप का जवाब बीन
मनडे का जवाब फ्राइडे
और
इक्के का जवाब
तुरुप !!

Wednesday, 29 October 2014

किराएदार

भाड़े पर आए थे सैंया, मालिक बन कर बैठ गए
हमरे दिल पे चुपके-चुपके, कब्जा कर के बैठ गए
रेंट दिया न, लिखा पढ़ी कुछ, कोई अग्रीमेंट नहीं
छोटा सा था एक बिएचके, अपना कर के बैठ गए
बालकनी थे नैनन की जो, उसको भी हथियाए हैं
दुनिया भर को तकने-झकने, अखियाँ बसके बैठ गए
बैठ गए तो ऐसे जमकर, हिलते हैं, न डुलते हैं
लम्बा चक्कर लगता है, जी, पलथी धरके बैठ गए

Saturday, 4 October 2014

आइस-पाइस

मैं खोजता हूँ तुम्हें,

जैसे एक मजदूर,
दिन भर की मेहनत के बाद
बीड़ी का बण्डल खोजता है
एक क़श में फ़कीर हो जाने के लिए
दो घड़ी अमीर हो जाने के लिए
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ पताका छाप बीड़ी हो

मैं खोजता हूँ तुम्हें,

जैसे एक किसान
महीना भर बुवाई के बाद
मूसलाधार सावन खोजता है
बूँद का एक-एक सिक्का बटोरकर
साहूकार हो जाने के लिए
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ सालाना मानसून हो

मैं खोजता हूँ तुम्हें,

जैसे एक इंजीनियर
हफ्ता भर घिसाई के बाद
फ्राइडे की बियर खोजता है
दो-एक रात को ही सही, नशे में
ख़ुद अपना बॉस हो जाने के लिए
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ किंगफिशर स्ट्रौंग हो

मैं खोजता हूँ तुम्हें

जैसे एडम और ईव
ख़ुदा से नज़र बचाकर
ईडेन का एप्पल खोजते हैं
बच्चलन हो जाने के लिए
इश्क़-हराम फ़रमाने के लिए
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ इक सेब हो

मैं खोजता हूँ तुम्हें

जैसे एक बच्चा
माँ से नज़र बचाकर
खड़िया, मट्टी, कूड़ा खोजता है
मुट्ठी भर खा लेने के लिए
माँ को यूँ ही सताने के लिए
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ मुट्ठी-भर-मिट्टी हो

मैं खोजता हूँ तुम्हें

जैसे ये मधुमक्खियाँ
चक्कर-चक्कर, दिन-भर
बाग-बगीचे-फूल खोजती हैं
शहद का वो छत्ता बनाने के लिए
जिसे कल कोई और तोड़ ले जाएगा
तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम मेरे लिए महज़ कोई-सा-भी फूल हो

तुम्हें सुनने में ‘अन-रोमैंटिक’ लगेगा
पर तुम्हें बस वैसे ही खोजता हूँ जैसे
इंसान जुराबें खोजते हैं
गंजहे अफ़ीम खोजते हैं
समंदर रेत खोजते हैं
मेंढक बरसात खोजते हैं
चूहे कपड़े-कपास खोजते हैं

कहीं, कभी, यूँ-ही
इस आइस-पाइस के
सिलसिले में
मिल जाओ न
कि मैं
खोजता हूँ
तुम्हे

इस-क़दर !

Friday, 12 September 2014

क़सम गैलीलियो की

याद है? ...

तुम्हें मैथ्स पसंद थी
लेकिन तुम्हारे खूंसठ बाप ने
तुम्हें दसवीं आते-आते
बायोलॉजी की गिरफ़्त में डाल दिया
और तुम मेंढक का पेट चीर-फाड़ कर
उसके मरे-बदबूदार-लिजलिजे शरीर को
माइक्रोस्कोप से देखती पढ़ती रही

मुझे बायोलॉजी पसंद थी
लेकिन मेरे इंजिनियर बाप ने
मुझे नवीं गुज़रते ही
गणित के पल्ले बाँध दिया
और मैं केसियो के कैलकुलेटर पे चढ़कर
सिंपल इंट्रेस्ट के कॉम्प्लेक्स सवाल
बग़ैर किसी इंट्रेस्ट हल करता रहा

आज,

दसवीं के कुछ बीस साल बाद
जब तुम अपने थुलथुल मरद की
तोंद की बायोलॉजी संभाल रही हो
और मैं अपनी टिपटॉप बीवी के
सोने के जेवरों के गणित में उलझा हूँ

तब,

"क़सम गैलीलियो की"
लाज़मी है
ये सोचना,
कि मेरे तुम्हारे
काइयाँ से दिखने वाले बाप

ग़ज़ब दूरदर्शी थे!

Thursday, 11 September 2014

हम नहीं फसेंगे

तुम आईं
बिलकुल उस शातिर
बहेलिये की तरह,

जाल पसराते हुए

मैं आया,
बिलकुल उन बुद्धू
चिरइयों की तरह

बात दोहराते हुए

"बहेलिया आएगा
बहेलिया दाना डालेगा
हम नहीं फसेंगे"

"बहेलिया आएगा
बहेलिया दाना डालेगा
हम नहीं फसेंगे"

हाय!
हमारी क़िस्मत!

तुम आईं, तुमने,
दाना भी नहीं डाला
और हम
दीवानगी की हद में
पलकों के जाल में
पाँवड़े बिछाकर

भूखे ही फँस गए!

Wednesday, 10 September 2014

रहि-मन-धागा

मेरे तुम्हारे
दरमियाँ
ये जो डोर है

उसमे 


गाँठ बन कर
ही सही

रह जाओ न !

'स्प्राउट्स'

कितनी ज़िद्दी हो!

यूं इतने हक़ से
बार-बार
दिल-ओ-दिमाग़ पर
इस तरह पनप आती हो
जैसे चने पर 'स्प्राउट्स'

'नमी' बड़ी बुरी चीज़ है!

दो-चार बूँद भी मिल जाए
तो रेगिस्तान को
गुलिस्ताँ होते
देर नहीं लगती

Monday, 8 September 2014

हारा रा जलाइ लौ

हारा रा जलाइ लौ भैया, हारा रा जलाइ लेओ
लौका-लाठी चौका-काठी मिन्टन मा जलाई देओ

पंडित जी की लुंगी जारो, वेदन को जलाई लेओ
जौनो कहे हराम मुहब्बत, आगिया मा जलाई देओ

मुल्ला की क़ितबिया जारो, ग्रंथन को जलाई लेओ
हमका तुमसे मिलने न दे, बंधन का जलाई देओ

पैसा बारो, कौड़ी जारो, बैंकों को जलाई लेओ
जौनो पूँजी जोड़ें लागे, भैन्चो को जलाई देओ

अपनी सोती अतमा जारो, थोड़ा तो जलाई लेओ
ठंडी है अंधेरी दुनिया, दीया तो जलाई देओ

दीया तो जलाई देओ भैया, हीया का जलाइ लेओ
हारा रा जलाइ लौ भैया, हारा रा जलाइ देओ

Monday, 25 August 2014

टैटू

इस सरहद पर किसने खींची, मेरे यार लकीरें
अच्छे-भले मुल्क की लिख दी, किसने ये तक़दीरें
सूनी अच्छी थी मिट्टी की कोरी सुर्ख हथेली
कैसे बूझेगी अब दुनिया इसपर लिखी पहेली
"टैटू" जैसे गुदवा दी हैं, कैसे इन्हें मिटाऊँ
किसके खून से धुलकर इसके जिद्दी दाग छुड़ाऊँ
सदियों-सदियों सहनी होगी इनपे जमी ख़राशें
बड़ा बुरा है मर्ज़ सियासत, कैसे दवा तलाशें

Saturday, 23 August 2014

ध्यान से देखो...तुम सी लगती है

वो गौरैया देख रही हो?
जो बारिश में भीग कर
रुई का गुल्ला हो गई है
और अपनी चोंच से
अपने पंखों को 
कंघी कर रही है

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

वो लाल रिबन बाँध कर
स्कूल जाती हुए लडकी
जो माँ से चोटी पर
गुडहल के चार फूल बनवाकर
चलती कम,
मटकती जादा है

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

वो पहेली याद है तुमको?
"हरी थी..मन-भरी थी.."
जिसका ज़वाब 'भुट्टा' था...
उसमें, वो सुनहरी सी लडकी,
जो, राजा जी के बाग़ में
दुशाला ओढ़े खड़ी थी

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

ये पुरानी फोटो भी देखो न,
जिसमे मेरी माँ
बीस बरस की है,
और कॉलेज बंक मारकर
पहली ब्लैक-एंड-व्हाईट फोटो खिचवाने
कितना सज-धज के
स्टूडियो में आई है

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

और ये ढाई साल की बच्ची
जो सोती है, तो
आँखे मिचकाती है
मुह बिचकाती है
और गहरी नींद में
चूस-चूस कर
अपना अंगूठा पिचकाती है

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

ये रात
चाँदनी
ख़ामोशी
सुबह
रौशनी
ज़िंदगी

जो भी मैं
देख पा रहा हूँ

ध्यान से देखो
तुम सी लगती है

Wednesday, 20 August 2014

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

वहाँ, जहाँ
स्कूल की घंटी बजी है
और प्राइमरी के बच्चे
मास्टर जी के वेस्पा स्कूटर से तेज
बिना क्लच-गियर-एक्सीलेरेटर
बेहिसाब दौड़ पड़े हैं
चूरन-बेर वाली बुढ़िया के ठेले की और

हीं हैं, बहुत दूर नहीं

वहाँ, जहाँ
पार्क की बेज़ान बेंच पर
चौकीदार से नज़र बचा कर
गोधन ने कनेली को
पहला कुंवारा चुम्बन दिया है
और कनेली के साथ-साथ
पार्क की बेंच भी जी उठी है

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

वहाँ, जहाँ
इन्द्रधनुष निकला है
और एक छोटे से बच्चे ने
अपनी एड़ी पर उचक कर
बादल के गुमनाम टुकड़े में
रुई के बालों के बीचों-बीच
सतरंगी "हेयरबैंड" ख़ोज निकाला है
और जी भर कर ताली बजाई है

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

वहाँ, जहाँ
काई के गुच्छे में फंसी
कागज़ की एक सीली सी नाव
पत्थर की ठोकर से उठी
लहर के धक्के से
बारिश में वापस तैर पड़ी है
रूठे से राजू के दरवाज़े की ओर

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

वहाँ, जहाँ
कल रात बिस्तर पर
पहली बार सलवटें पड़ीं
और उनकी क्रीज़ की गहराई में
पाज़ेब, बुंदे, लाज,
लत्ते-कपड़े-राज़, और
न जाने क्या-क्या हिरा गया

यहीं हैं, बहुत दूर नहीं

ज़िंदगी,
और उसके
निशाँ
यहीं हैं,
बहुत दूर नहीं

Monday, 18 August 2014

"वन-टू-हंड्रेड"

वो बच्ची हर रात
"वन-टू-हंड्रेड" 
तारे गिनती है
क्योंकि बाबा ने
उसकी उँगलियों के पोरों पर
सौ के आगे के "नंबर"
अभी तक सजाए नहीं हैं

वो रोज़ चाँद को भी गिनती है
जबकि आसमान में
ले-दे-कर बस एक ही
बोरिंग सा चाँद है

उसका अंगूठा
टब्बक-टब्बक, उछल-उछल
उँगलियों के पोरों पर
दौड़ता है तो, ये तारे
टिम-टिमा कर
"प्रेजेंट मैम" कहकर
अपनी हाज़िरी दर्ज़ करा देते हैं

मुझे फ़िक्र है कि
कि कल को वो बच्ची
बड़ी हो जाएगी
और "हंड्रेड" से आगे की
ख़तरनाक सी गिनती
स्कूल से या क़िताबों से
सीख आएगी

और तब, जब उसे
गिनने के लिए
अंगूठे से उँगलियों के पोरों को
छूने की ज़रूरत भी न होगी

उस दिन ये खेल
बोरिंग होकर
छत पर
लावारिस ही छूट जाएगा

और "मैम" को खोजता
"प्रेजेंट" सा वो तारा
बावला सा, हैरान सा
बालकनी के किसी कोने में
"एब्सेंट" ही टूट जाएगा

Tuesday, 15 July 2014

वेस्टीजियल ऑर्गन

मोहोब्बत, मेरे यार
"वेस्टीजियल ऑर्गन" है
जो है कुव्वत
तो बचा ले
इससे पहले कि, इसे
इवोल्यूशन पचा ले !

Saturday, 5 July 2014

मोहोबब्त - मोहोब्बत - टर्र - टर्र

तब जबकि, सब
इंटेलेक्चुअल्स की तरह
क्रान्ति की बातें कर रहे होंगे
हम उस वक़्त,
बेशर्मों की तरह 
मोहोब्बत की बातें जी रहे होंगे
मोहोब्बत जो जितनी इबादत होगी
उतनी ही हवस और वासना भी
हमें इंटेलेक्चुअल नहीं
मेंढक होना पसंद है
जो सावन की हर बारिश से
बेइंतहा 'ठरक' कर
अपने गाल फुला लेते हैं
और तब तक टर्राते रहते हैं
जब तक कि मेंढक मेंढकी
टर्र-टर्र की टॉर्च से
एक दुसरे को, रात के अँधेरे में
ख़ोज नहीं लेते
-
तब जबकि सब,
समाजवादियों की तरह
समाज बदल रहे होंगे
हम उस वक़्त
लिजलिजे, ठरकी, उजड्ड, अनपढ़
बेढंगे मेंढकों की तरह
शोर मचाकर टर्रा रहे होंगे
एक ऐसे सावन के इंतज़ार में
जब रात बादलों से झमाझम !!
इश्क़ की भांग बरसेगी
और दुनिया के सारे मेंढक
अपने अपने पोखर-तलाबों से निकलकर
इन क्रांतिकारियों की दुनिया को
अपनी टर्र-टर्र के शोर से
इस हद तक भर देंगे
कि उनके इंक़लाब के
हर फुसफुसे नारे के 'पतंगे' को
हमारे फूले हुए गालों से निकले
बेढंगे से शोर की 'लम्बी जीभ'
गप्प कर के खा जाएगी
मोहोब्बत मोहोब्बत - टर्र टर्र
इबादत इबादत - टर्र टर्र
इश्क़ इश्क़ टर्र - टर्र
हवस हवस टर्र टर्र

Sunday, 29 June 2014

छोटा अ से अनार

कल, जब 
एक क्रांतिकारी 
साहित्यकार ने 
ज़िंदगी भर की 
समझ निचोड़ कर 
दुनिया को 
फूंक डालने का 
निमंत्रण लिखा 

तभी, कल, उसी पहर 
एक तोतले बच्चे ने
स्लेट पर खड़िया से
छोटा अ से अनार,
बड़ा आ से आम लिखा

'र' पे बड़ा आ
'ज' में लगाके छोटा उ
'राजु' अपना नाम लिखा !!

हराम

वो सब कि जो हराम है, वो सब कि जो ख़राब है 
मेरे नसीब में तू लिख, वो सब कि जो शराब है 

ये पाक़ साफ़ जो भी है, तेरा है, तू ही रख ज़रा 
मुझे वही अता करो, लबों का जो लबाब है

माचिस

भांति-भांति के लोग भतेरे, 
भांति-भांति की ख्वाहिश 
भांति-भांति बारूद भतेरे, 
एक अकेली माचिस !

Sunday, 8 June 2014

चिरपिर

पहले यहाँ पतंगों को, कुछ बच्चे लूटा करते थे
एक कटे तो, उसके पीछे दसियों छूटा करते थे

आज पतंगे बे-वजहा बिजली खम्बों में फंसती हैं
फटी-फटी सी आँखों से न जाने किसको तकती हैं

सालों-साल टंगी रहती हैं, इतनी जिद्दी होती हैं
उस बुढ़िया के जैसे ये, कुछ कहती हैं, न रोती हैं

इसी आरज़ू में चिरपिर, करती हैं, के वो, आएगा
छुटका छुर्री देगा, तिस पर, मझला भाई उड़ाएगा

  

Thursday, 22 May 2014

सवाया

आधा-पौना मत आना
जो अबकी आना साजन

तुम जैसे हो वैसे बनकर
'पूरे' आना साजन 

Thursday, 8 May 2014

दो-सौ-बहत्तर

सुनो,
जब वो सब
पहाड़ के इस तरफ़
कुर्सी-कुर्सी जोड़ कर
सरकार बना रहे होंगे

मैं और तुम
पहाड़ के उस तरफ़
तिनका-तिनका जोड़ कर
चुपचाप
एक घोसला बना लेंगे

जब वो इधर,
जोड़-तोड़ से
चला रहे होंगें
अल्प मत की
सरकार

तब, उधर
हमारे घोसले में
पूर्ण बहुमत से
मैं तुम्हें रानी
घोषित कर दूंगा
और तुम भी, इतराकर
मान लेना मुझे
अपना यार

बेफ़िक्र करेंगे हम
वादियों में
गोताखारी
और न लौटेंगे कभी

इस पार

Wednesday, 23 April 2014

मोहोब्बत तेरी याद आई

"आज फिर, कुछ-एक मर्तबा, 
मोहोब्बत तेरी याद आई 
हर इक साँस से पहले, 
हर इक साँस के बाद आई "

Monday, 7 April 2014

खलिहान

अबकी उड़ना,
तो दाना लेकर
घोसले को
लौट आने को
मत उड़ना

ये पंछी
जाल में नहीं फसते

ये फसते हैं तो
दाने के ढेर में

दल्हानों में

Thursday, 13 March 2014

गुमशुदा की तलाश में एक इश्तिहार ...



अक्कड़-बक्कड़-बम्बे गुम, अस्सी-नब्बे-सौ भी गुम
मुझमे कहीं हुआ करता था, भोला-भाला बच्चा, गुम

अब भी यहाँ उड़ा करती हैं, आसमान में कई पतंगें
लावारिस गिर जाती हैं, लूटन वाला बच्चा गुम

देखो तो दिख जाएगा, जुगनू अब भी चमचम है 
पीछे-पीछे भगने वाला, तकने वाला, बच्चा गुम 

उस बुढ़िया की बड़बड़ में, शायद एक कहानी हो 
अब भी कुछ तो कहती है, सुनने वाला बच्चा गुम 

झिलमिल करते तारों को, जोड़-जाड़ कर देखो तो 
एक धनुष बन जाता है, गिनने वाला बच्चा गुम 

मैं भी गुम, तू भी गुम, कितने गुमसुम लगते हैं 
बिना वजह की बातों पर, हँसने वाला बच्चा गुम 

Tuesday, 11 March 2014

ककहरा

तोर ककहरा क-ख-ग-घ
मोर ककहरा साजन 
तै बांछेगा ए-बी-सी-डी
मैं भज लूँगा साजन

फस्ट क्लास तै पास भया
मैं लाया सेकेन डिवीजन 
तेरी झोली कागज़-पत्तर 
मेरी झोली साजन

Saturday, 18 January 2014

मुख़ातिब

तब जबकि हम-सब 
ख़ुदा से, 
हो रहे होंगे 
मुख़ातिब

और कोशिश में होंगे, 
सबसे ख़ूबसूरत, सुलझे 
और पाक़-साफ़ दिखने को 

तब, तुम,
सोई-सोई आँखों से 
चली आना, चुपचाप 

और मेरी गोद में 
सिर रखकर 

बेख़बर सो जाना 

मुझे यक़ीन है, 
ख़ुदा 
हम दोनों को 
बिठा लेगा, तब

अपने ताज-ओ-तख़्त पर 

और, ख़ुद
नीचे बैठकर 
पाँव पखारेगा 

कुछ मेरे
और कुछ तुम्हारे 

स्नेह से भर आई 
आखों की 
अश्रुधार से !