Friday 30 August 2013

सोनजुही

अलसाई सी सोनजुही
बौराई सी महुआ की ओस 
चिर पलाश की मादकता
या मुक्त तबस्सुम लाखों कोस

छिपी उनींदी किरण पूस की
सप्तक का झंकृत उद्घोष
शरद रत्रि की नीरवता
या रति की सुन्दरता का कोष

जेठ दुपहरी की बदली
तुम निर्झर की छींटों का तोष
विधि ने हंस कर जो कर दी 
उस एक शरारत भर का दोष 

मेघों से जो रूठ के बरसी
हो ऐसी बरखा का रोष
बाहों में जो टूट के तरसी
भूली बिसरी खोई होश

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