एक गांव में ताज़ा बचपन
अमराई पे जुटता था
बौराई चटकी कलियों पर
पागलपन सा लुटता था
अमराई पे जुटता था
बौराई चटकी कलियों पर
पागलपन सा लुटता था
चिकने पीले ढेले लाकर
उनकी हाट जमाता था
पौआ भर गुड़ से भी ज्यादा
उनका मोल लगाता था
नमक लगी रोटी मुट्ठी में
भरकर मजे से खाता था
भरकर मजे से खाता था
फसल चाटती हर टिड्डी को
जमकर डांट लगाता था
जमकर डांट लगाता था
अमिया की लंगड़ी गुठली से
सीटी मस्त बजाता था
टीले पे बैठा राजा बन
सब पर हुकुम चलाता था
सब पर हुकुम चलाता था
कभी सूर्य तो कभी पवन को
मुर्गा मस्त बनाता था
एक गांव मे ताज़ा बचपन....
मुर्गा मस्त बनाता था
एक गांव मे ताज़ा बचपन....
अमराई पे जुटता था...
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